घमसो मैया मन्दिर धौलपुर



इसे अगर राजस्थान का मिनी कश्मीर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।और इस स्थान घने जंगल में हर प्रकार के साधारण और खुंखार जंगली जानवर रहते है।
हाल ही में समाचार पत्रों की सुर्खियों में आया मोहन टाइगर भी इस प्राकृ1तिक स्थान पर 4 माह तक रह कर गया है। जिसके बारे में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था कि मोहन टाइगर के पद चिन्ह दमोह क्षेत्र में मिले है। यह वही स्थान है।

ककोरा,मुरेला,सहित अनेक औषधियों की जड़िबुटियों के महत्व वाले पौधे इस स्थान पर मिलते है।अगर कोई मंत्री या अधिकारी इस क्षेत्र को दमोह क्षेत्र को दोरा करता हैं तो उसे यहां का झारना देखने की इच्छा जरूर हो ही आती है।यह स्थान पर्यटन के लिहाज से और भी अच्दा हो सकता हैं अगर सरकार इस तरफ कुछ ध्यान दे क्योंकि यह स्थान चम्बल के डकेतों की शरण स्थली बना हुआ है। और बिना सुविधा के जंगली जानवरों का भी भय रहता है। और सबसे महत्व पूर्ण बात तो यह है कि यहां सुविधाओं जैसे सड़क मार्ग,बिजली ,पानी, साधन, रहन सहन आदि की अभाव है।लौग गांवो से दर्शनार्थ पैदल चलकर आते हैं लोग ही नहीं नेता गण और अधिकरी भी इन्हीं ऊबड़खाबड़ रास्तों से होकर ही आते हैं लेकिन सुविधाओं और विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। इस स्थल की यात्रा का यात्रावृतांत और यहां की अदभुत विशेषताओं के बारे में मैं रमेश फुलवारिया (बगड़ ) निवासी जो वहा झिरी गांव में एक अध्यापक के पद पर कार्यरत है।मैं अपने वहां के 20-30 दोस्तों के समूह के संग की मैया तक जाने का रास्ता बड़े बड़े बहते पानी के15 -20 नालों के अन्दर से होकर गुजरता है। परन्तु ऐसी मान्यता हैं कि माता के दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों के साथ किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी घटना नहीं होती है। और वे इन नालों को आराम से पार कर लेते है।
यहां के लोग वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही इस जंगल में अपने मवेशी/पशुओं को लेकर आ जाते हैं और वही अपनी झोपड़ी बनाकर होली त्यौहार तक रहते हैं पुछने पर बताते हैं कि यहां पशुओं को खाने को चारा भी मिल जाता है। और वे दुध घी भी अच्छी मात्रा में देती है। यह स्थल राजस्थान का वैष्णों देवी धाम कहलाने लायक है। वही मन मोहक दृश्य कल-कल करती नदियां अधिक उंचाई से गिरता झरने,प्रकृति की गोद में विराजमान माता रानी का पवीत्र स्थल मन मोहक प्राकृतिक दृश्य, जीव जन्तुजिन्हे देख्कर मन वहां से हटने को ही नहीं करता ऐसा लगता है कि यहीं जीवन बीता दें
यहां के लोग बताते हैं कि दमोह का यह झरना इतना गहरा हैं इसमें अगर सात खटियां चारपाई की जेवरी रस्सर भी डाली जाये इसे नापने के लिए तो वो भी कम पड़ती हैं कहने का मतलब कि इसका आज तक कोई गहराई नहीं माप सका है।

और यहा के लोगों का यह भी मानना है कि जब इस मैया का मेला भरता हैं तो रास्ते में आने जाने वाले श्रृधालु भक्तों को किसी भी प्रकार डैकेतो और जंगली जानवरों द्वारा परेशानी नहीं होती और नही किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित नहीं होती हैं यह सब मैया की ही कृपा है।



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Writer:-
Ramesh Kumar
(Teacher)
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