घमसो मैया मन्दिर धौलपुर
घमसो मैया जो
शेषनाग फनी आकार के पर्वत की कंदराओं के बीच विराजमान है। आज मैं आपको
वहां का यात्रावृतांत और यहां की अदभुत विशेषताओं के बारे में बताने जा रहा
हूं। दमोह धौलपुरजिले के सरमपूरा क्षेत्र के पास स्थित इस मन्दिर पर घमसो
मैया की जात, मेला आश्विन कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि 2 को लगता है। यहां
जात देने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु गण आते है।माता से मन्नत मांगते हैं
इस स्थान के बारे में ऐसा कहा जाता हैं कि माता से सच्चे मन सें मांगी गई
मुराद माता अवश्य पूरी करती है। लेकिन मन्नत पुरी होने पर उस भक्त को पुनः
माता के के इस स्थल पर दर्शनार्थ आना अति आवश्यक है।
इस मैया का दरबार घने जंगल के बीचों बीच एक पहाड़ के शेषनागफनी आकार के छत्र के नीचे स्थित है।दमोह स्थान पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत ही महत्व पूर्ण है। इसका कारण यहां का एक बहुत बड़ा प्राकृतिक झरना हैं यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों और हरे भरे जड़ी बूटी युक्त पेड़ पौधों से घीरा हुआ हैं और देखने में ऐसा लगता है, मानों कि हम पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर देख रहें है।
इसे अगर राजस्थान का मिनी कश्मीर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।और इस स्थान घने जंगल में हर प्रकार के साधारण और खुंखार जंगली जानवर रहते है।
हाल ही में समाचार पत्रों की सुर्खियों में आया मोहन टाइगर भी इस प्राकृ1तिक स्थान पर 4 माह तक रह कर गया है। जिसके बारे में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था कि मोहन टाइगर के पद चिन्ह दमोह क्षेत्र में मिले है। यह वही स्थान है।
इस क्षेत्र में ढ़ाक,प्लास्क,देतु,जामून,खेर,गुगल,इमली,आम,ताड़,साळ,सागवान,
ककोरा,मुरेला,सहित अनेक औषधियों की जड़िबुटियों के महत्व वाले पौधे इस स्थान पर मिलते है।अगर कोई मंत्री या अधिकारी इस क्षेत्र को दमोह क्षेत्र को दोरा करता हैं तो उसे यहां का झारना देखने की इच्छा जरूर हो ही आती है।यह स्थान पर्यटन के लिहाज से और भी अच्दा हो सकता हैं अगर सरकार इस तरफ कुछ ध्यान दे क्योंकि यह स्थान चम्बल के डकेतों की शरण स्थली बना हुआ है। और बिना सुविधा के जंगली जानवरों का भी भय रहता है। और सबसे महत्व पूर्ण बात तो यह है कि यहां सुविधाओं जैसे सड़क मार्ग,बिजली ,पानी, साधन, रहन सहन आदि की अभाव है।लौग गांवो से दर्शनार्थ पैदल चलकर आते हैं लोग ही नहीं नेता गण और अधिकरी भी इन्हीं ऊबड़खाबड़ रास्तों से होकर ही आते हैं लेकिन सुविधाओं और विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। इस स्थल की यात्रा का यात्रावृतांत और यहां की अदभुत विशेषताओं के बारे में मैं रमेश फुलवारिया (बगड़ ) निवासी जो वहा झिरी गांव में एक अध्यापक के पद पर कार्यरत है।मैं अपने वहां के 20-30 दोस्तों के समूह के संग की मैया तक जाने का रास्ता बड़े बड़े बहते पानी के15 -20 नालों के अन्दर से होकर गुजरता है। परन्तु ऐसी मान्यता हैं कि माता के दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों के साथ किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी घटना नहीं होती है। और वे इन नालों को आराम से पार कर लेते है।
यहां के लोग वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही इस जंगल में अपने मवेशी/पशुओं को लेकर आ जाते हैं और वही अपनी झोपड़ी बनाकर होली त्यौहार तक रहते हैं पुछने पर बताते हैं कि यहां पशुओं को खाने को चारा भी मिल जाता है। और वे दुध घी भी अच्छी मात्रा में देती है। यह स्थल राजस्थान का वैष्णों देवी धाम कहलाने लायक है। वही मन मोहक दृश्य कल-कल करती नदियां अधिक उंचाई से गिरता झरने,प्रकृति की गोद में विराजमान माता रानी का पवीत्र स्थल मन मोहक प्राकृतिक दृश्य, जीव जन्तुजिन्हे देख्कर मन वहां से हटने को ही नहीं करता ऐसा लगता है कि यहीं जीवन बीता दें
यहां के लोग बताते हैं कि दमोह का यह झरना इतना गहरा हैं इसमें अगर सात खटियां चारपाई की जेवरी रस्सर भी डाली जाये इसे नापने के लिए तो वो भी कम पड़ती हैं कहने का मतलब कि इसका आज तक कोई गहराई नहीं माप सका है।
और यहा के लोगों का यह भी मानना है कि जब इस मैया का मेला भरता हैं तो रास्ते में आने जाने वाले श्रृधालु भक्तों को किसी भी प्रकार डैकेतो और जंगली जानवरों द्वारा परेशानी नहीं होती और नही किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित नहीं होती हैं यह सब मैया की ही कृपा है।
इसी जंगल में एक सुप्रसिद्ध महात्मा आत्मापुरी बाब की छतरी (समाधी स्थल) भी है। इसी छतरी के पास से एक नाला (खार) पानी बहता हैं दन्त कथा है कि आत्मपूरी बाबा के प्रताप यह नाला पहले दुध का बहता था तथा आत्मपुरी बाबा हमेशा शरीर से अपनी आत्मा को निकाल कर उसे दुध में धोते थे यह कितना सच हैं ये तो भगवान ही जाने।और वहा बंकर नुमा एक कमरा भी बना हुआ जिसके पास से नाला गुजरता हैं यह कमरा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिए बनाया गया है। इसके अन्दर जाने का सिर्फ एक छोटा सा ही रास्ता है। और अन्दर निशाने के लिए छेद बने हुए थे।बहुत पहले यहाँ राजा महाराजा आया करते थे और वे इस कमरे को शिकार के काम लेते थें ऐसा माना गया है। कमरा इतना अदभुत हैं कि उसमें पेट के बल लेट कर ही अन्दर घुसा जा सकता हैं खड़ा नहीं। माता का यह मन्दिर जिस पहाड़ी के नीचे बना हैं वह एक शेषनाग के फन नुमा मन्दिर के उपर झुका हुआ है।यह झुकाव लगभग आधा किलोमीटर तक हैं और इसकी चौड़ाई 100 फूट के लगभग है।ऐसा कहा जाता हैं कि माता के दरबार में आने वाले भक्तों को धुप और बारिश से बचाने के लिए काम आता है। कहा जाता हैं कि इसके नीचे लगभग 10 लाख व्यक्ति खड़े रह सकते है। फिर भी यह कम नहीं पड़ता है।
यहा आने वाले भक्त अपने घर से ही भोजन बनाकर साथ ले जाते है। और स्नान कर दर्शन करने के बाद ही खानाखाते हैं
तथा ताज्जुब की बात यह है कि प्रसाद चढ़ाने के लिए भी लोगों को घर से ही प्रसाद लाना पड़ता हैं वहा कोई दुकान वगेरह नहीं है।
इस मैया का दरबार घने जंगल के बीचों बीच एक पहाड़ के शेषनागफनी आकार के छत्र के नीचे स्थित है।दमोह स्थान पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत ही महत्व पूर्ण है। इसका कारण यहां का एक बहुत बड़ा प्राकृतिक झरना हैं यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों और हरे भरे जड़ी बूटी युक्त पेड़ पौधों से घीरा हुआ हैं और देखने में ऐसा लगता है, मानों कि हम पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर देख रहें है।
इसे अगर राजस्थान का मिनी कश्मीर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।और इस स्थान घने जंगल में हर प्रकार के साधारण और खुंखार जंगली जानवर रहते है।
हाल ही में समाचार पत्रों की सुर्खियों में आया मोहन टाइगर भी इस प्राकृ1तिक स्थान पर 4 माह तक रह कर गया है। जिसके बारे में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था कि मोहन टाइगर के पद चिन्ह दमोह क्षेत्र में मिले है। यह वही स्थान है।
ककोरा,मुरेला,सहित अनेक औषधियों की जड़िबुटियों के महत्व वाले पौधे इस स्थान पर मिलते है।अगर कोई मंत्री या अधिकारी इस क्षेत्र को दमोह क्षेत्र को दोरा करता हैं तो उसे यहां का झारना देखने की इच्छा जरूर हो ही आती है।यह स्थान पर्यटन के लिहाज से और भी अच्दा हो सकता हैं अगर सरकार इस तरफ कुछ ध्यान दे क्योंकि यह स्थान चम्बल के डकेतों की शरण स्थली बना हुआ है। और बिना सुविधा के जंगली जानवरों का भी भय रहता है। और सबसे महत्व पूर्ण बात तो यह है कि यहां सुविधाओं जैसे सड़क मार्ग,बिजली ,पानी, साधन, रहन सहन आदि की अभाव है।लौग गांवो से दर्शनार्थ पैदल चलकर आते हैं लोग ही नहीं नेता गण और अधिकरी भी इन्हीं ऊबड़खाबड़ रास्तों से होकर ही आते हैं लेकिन सुविधाओं और विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। इस स्थल की यात्रा का यात्रावृतांत और यहां की अदभुत विशेषताओं के बारे में मैं रमेश फुलवारिया (बगड़ ) निवासी जो वहा झिरी गांव में एक अध्यापक के पद पर कार्यरत है।मैं अपने वहां के 20-30 दोस्तों के समूह के संग की मैया तक जाने का रास्ता बड़े बड़े बहते पानी के15 -20 नालों के अन्दर से होकर गुजरता है। परन्तु ऐसी मान्यता हैं कि माता के दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों के साथ किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी घटना नहीं होती है। और वे इन नालों को आराम से पार कर लेते है।
यहां के लोग वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही इस जंगल में अपने मवेशी/पशुओं को लेकर आ जाते हैं और वही अपनी झोपड़ी बनाकर होली त्यौहार तक रहते हैं पुछने पर बताते हैं कि यहां पशुओं को खाने को चारा भी मिल जाता है। और वे दुध घी भी अच्छी मात्रा में देती है। यह स्थल राजस्थान का वैष्णों देवी धाम कहलाने लायक है। वही मन मोहक दृश्य कल-कल करती नदियां अधिक उंचाई से गिरता झरने,प्रकृति की गोद में विराजमान माता रानी का पवीत्र स्थल मन मोहक प्राकृतिक दृश्य, जीव जन्तुजिन्हे देख्कर मन वहां से हटने को ही नहीं करता ऐसा लगता है कि यहीं जीवन बीता दें
यहां के लोग बताते हैं कि दमोह का यह झरना इतना गहरा हैं इसमें अगर सात खटियां चारपाई की जेवरी रस्सर भी डाली जाये इसे नापने के लिए तो वो भी कम पड़ती हैं कहने का मतलब कि इसका आज तक कोई गहराई नहीं माप सका है।
और यहा के लोगों का यह भी मानना है कि जब इस मैया का मेला भरता हैं तो रास्ते में आने जाने वाले श्रृधालु भक्तों को किसी भी प्रकार डैकेतो और जंगली जानवरों द्वारा परेशानी नहीं होती और नही किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित नहीं होती हैं यह सब मैया की ही कृपा है।
इसी जंगल में एक सुप्रसिद्ध महात्मा आत्मापुरी बाब की छतरी (समाधी स्थल) भी है। इसी छतरी के पास से एक नाला (खार) पानी बहता हैं दन्त कथा है कि आत्मपूरी बाबा के प्रताप यह नाला पहले दुध का बहता था तथा आत्मपुरी बाबा हमेशा शरीर से अपनी आत्मा को निकाल कर उसे दुध में धोते थे यह कितना सच हैं ये तो भगवान ही जाने।और वहा बंकर नुमा एक कमरा भी बना हुआ जिसके पास से नाला गुजरता हैं यह कमरा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिए बनाया गया है। इसके अन्दर जाने का सिर्फ एक छोटा सा ही रास्ता है। और अन्दर निशाने के लिए छेद बने हुए थे।बहुत पहले यहाँ राजा महाराजा आया करते थे और वे इस कमरे को शिकार के काम लेते थें ऐसा माना गया है। कमरा इतना अदभुत हैं कि उसमें पेट के बल लेट कर ही अन्दर घुसा जा सकता हैं खड़ा नहीं। माता का यह मन्दिर जिस पहाड़ी के नीचे बना हैं वह एक शेषनाग के फन नुमा मन्दिर के उपर झुका हुआ है।यह झुकाव लगभग आधा किलोमीटर तक हैं और इसकी चौड़ाई 100 फूट के लगभग है।ऐसा कहा जाता हैं कि माता के दरबार में आने वाले भक्तों को धुप और बारिश से बचाने के लिए काम आता है। कहा जाता हैं कि इसके नीचे लगभग 10 लाख व्यक्ति खड़े रह सकते है। फिर भी यह कम नहीं पड़ता है।
यहा आने वाले भक्त अपने घर से ही भोजन बनाकर साथ ले जाते है। और स्नान कर दर्शन करने के बाद ही खानाखाते हैं
अंत में मै यही कहूंगा धन्य हैं वे लोग जिन्होंने इस स्थल के दर्शन कर माता के दर्शनों के साथ साथ मनमोंहक दृश्य का नजारा देखा और मैं रमेश फुलवारिया आप का भी आभार व्यक्त करना चाहूंगा,आपसे भी जरूर चाहूंगा कि अगर धौलपुर की तरफ जाने का मन बने तो जरूर इन दर्शनों का लाभ प्राप्त करना ना भूलियेगा।
Writer:-
Ramesh Kumar
(Teacher)
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08955263800
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