गुदड़ी मेला
झिरी गॉव में आश्विन कृष्ण 2 व 3 को गुदड़ी का मेला भरता है। यह मेला इस गॉव में प्राचीन काल से ही भरा जाने वाला प्रसिद्ध मेला हैं। इस मेले का नाम गुदड़ी क्यों रखा गया, यह तो स्थानीय लोगों को भी पता नही। लेकिन यह मेला राजाशाही जमाने से भरा जाने वाला बहुत प्राचीन मेला हैं।
यहॉ मेला लगाने व देखने के लिए पड़ोसी राज्य उतरप्रदेश, मघ्यप्रदेश से भी लोग आते हैं। यहां तक कि गॉव के स्थानीय निवासी , जो भारत के किसी कोने मे कार्य करता हो, वह भी इस मेले पर जरुर आता हैं।
इस मेले मे हर प्रकार के जरुरत के समान व बच्चों के खिलौनों की दुकानें लगती हैं। तथा यहॉ के स्थानीय लोगो द्वारा मिठाई की दुकाने खोली जाती हैं। मेले मे बच्चों, बुढो व महिलाओं को जगह-2 गरम-गरम जलेबी के चटकारे ( स्वाद लेते हुए देखा जाता हैं।
और महिलाओं के सौन्दर्य प्रसाधन की दुकाने भी बहुत अधिक संख्या में आती हैं। यहॉ के स्थानीय लोग बताते हैं कि यह गॉव शहर से दूर स्थित होने के कारण
महिलाऐं अपने सौन्दर्य प्रसाधन का समान खरीदने अकेली शहर नही जा सकती। इसलिये वे इस मेले मे ही पुरे साल भर की खरीददारी करती हैं।
यह मेला दो दिन तक लगता है। जिसमे पहले दिन की शाम को युवाओं द्वारा दखना (ऊॅची कुद की व दुसरे दिन की शाम को कुश्ती (दगंल की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं।
जिसमे भाग लेने व देखने के लिए दुर-दराज के गावों के लोग आते हैं। प्रतियोगिता जीतने वाले को उचित ईनाम दिया जाता हैं।
स्थानीय लोगों के सानिध्य में, बिना प्रशासनिक व्यवस्था के मेला व प्रतियोगितायें शान्तिपुर्वक तरीके से सम्पन्न होती हैं।
मेले मे पटवा जाति के लोगो द्वारा खिलौने आदि की दुकाने लगाई जाती हैं। उनसे इस मेले का इतिहास पुछने पर उन्होनें बताया कि इस मेले मे हमारी पिछली 4-5 पीढी दुकान करती आ रही हैं। और अब हम कर रहे हैं। लेकिन ये मेला कब से लगता आ रहा हैं, यह तो हमें भी स्पष्ट जानकारी नही हैं। मेले के दौरान गॉव की गलियों मे बहुत अधिक भीड़ देखने को मिलती हैं। जिसमे से गुजरना भी मुश्किल हो जाता हैं। आस पड़ौस के गॉवो से बच्चे, बुढे और महिलाओं का एक साथ समुह का समुह मेला देखने आते हैं। मेले के दौरान तो झिरी गॉव मे शहर से भी ज्यादा भीड़ रहती हैं। दुर-दराज के लोग इस मेले मे इक्कठे होने से वे एक दुसरे से मिलते हैं। बड़े-बुढे लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को कंधो पर बिठा कर मेले दिखाने लाते हैं।
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